छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212
चले गाड़ी देख अमीर के, हे अटारी देख अमीर के।
दबे नाँव रइथे गरीब के, हे पुछारी देख अमीर के।1
कई झन अघाड़ी कई पिछाड़ी, बने फिरै सदा दिन इँखर।
गुणी ज्ञानी मन घलो रोज करथे, बिगारी देख अमीर के।2
खुदे बेंचा जा ठिहा ठौर सुद्धा, तभो रकम लगे हाथ ना।
फले नइ फुले तभो दाम देथे, गा बारी देख अमीर के।3
रहे मन गरीब के तीर ना घलो, बोलथे सगा मन चलो।
सही सपना का सबे संग पटथे, गा तारी देख अमीर के।4
कहाँ थेभा फुटहा नसीब के, कहाँ कोई साथी गरीब के।
रथे चोर संग घलो सिपैहा, पुजारी देख अमीर के।5
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
Total Pageviews
Monday 17 August 2020
छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
गजल
गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...
-
ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'* *बहरे रमल मुरब्बा सालिम* *फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन* *2122 2122* पैदा होवत पर निकलगे। फूल के बिन फर निकल...
-
गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...
-
गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया" *बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम* *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन* *2212 2212 2212* अब बता बिन काम के...
No comments:
Post a Comment