छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122
बने बनाये बुता बिगड़थे, घुचुर पुचुर अउ करे मा जादा।
कते उपर तैं उँचाबे उँगली, भराय बैरी घरे मा जादा।।
चिढ़ाय मा चिढ़ जथे बने मन, फटर फिटिर करथे बड़ तने मन।
अपन करा झन बला बला ला, नमक चुपर झन जरे मा जादा।
बने बने बर बुता बने कर, जिया लुभा सबके फूल अउ फर।
अँड़े भले रह गियान गुण बिन, नँवेल पड़थे फरे मा जादा।।
अकास थुकबे तिहीं छभड़बे, खने कुआँ मा खुदे हबरबे।
भभक भभक खुद के जिवरा जरथे, दुवेष पाले बरे मा जादा।
कभू बना पथरा कस जिया ला, कभू पिघल जा रे मोम बनके।
कभू बने काँच धीर खो झन, डराय जिवरा डरे मा जादा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
Total Pageviews
Wednesday 12 August 2020
छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
गजल
गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...
-
ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'* *बहरे रमल मुरब्बा सालिम* *फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन* *2122 2122* पैदा होवत पर निकलगे। फूल के बिन फर निकल...
-
गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...
-
गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया" *बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम* *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन* *2212 2212 2212* अब बता बिन काम के...
बहुत सुग्घर रचना
ReplyDelete