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Monday, 10 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*

मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन

1212 212 122 1212 212 122

अमीर कतको ले ले करजा, इती उती मुँह लुकात हावै।
कमा कमा के किसान बपुरा, लिये सबे ऋण चुकात हावै।

गरब हे मोला हरौं गँवइहाँ, चलौं धरा संग डार बँइहाँ।
हमर उपर नित धरा के धुर्रा, गुलाल जइसे बुकात हावै।

सजे हवै सोने सोन पुतरी, सुनार के सिर बँधाय सुतरी।
फसल उगइया भुखात हावै, धनुष धरइया तुकात हावै।

कलंक हा का दबे दबाये, अँड़े खड़े तौन मेंछराये।
झुके फरे फर मा जेन बिरवा, हवा धुका अउ झुकात हावै।

दुवा मिलत हे अभो बने ला, सुनाय गारी गिरे सने ला।
जिंखर परे चाल मा हे कीरा, उँखर उपर अभो थुकात हावै।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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