ग़ज़ल--आशा देशमुख
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
सौ भले हे बड़े पाँच भारी पड़े
ताम पीतल म हे काँच भारी पड़े।
झूठ बइठे तराजू म क्विंटल किलो
एक तिल के सहीं साँच भारी पड़े।
डालडा हा जमे सोझ निकले नही।
नानकुन अंगरा आँच भारी पड़े।
लाख रुपिया के जानव सुबे के हवा
बैद डॉक्टर दवा जाँच भारी पड़े।
रेल लोहा हवय लाद लोहा चलय
जाय पटरी उखड़ खाँच भारी पड़े
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
No comments:
Post a Comment