ग़ज़ल--आशा देशमुख
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
रात बीते अगोरत पहर आखरी
मन मया मा हिलोरे लहर आखिरी।
आज पानी हवय प्रान बाँचे हवय
जीव खोजत फिरत हे नहर आखरी।
का कछेरी अदालत में जावत हवच
एक हावय मया के डहर आखरी
जेन दिन वायरस के जी मिलही दवा
हे उही दिन करोना कहर आखरी।
मान पानी बिना कुछ नही हे सगा
झन गरू बन निकल अब ठहर आखरी।
भूख करजा गरीबी सताए जबड़
बाँचगे जिंदगानी जहर आखरी।
घूम के देश दुनिया तभो नइ थके
अब थिराले इही हे शहर आखरी।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
No comments:
Post a Comment