गजल- चोवा राम 'बादल'
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
पाँव हा तैं कहे आज खजुवात हे
लागथे वोला सुरता अबड़ आत हे
देवता मन तकों हार माने हवयँ
सबले बलवान नारी के गा जात हे
अब बिना घूस दे काम होवय नहीं
देश ला वो घुना रात दिन खात हे
बिच्छी कस मार दिच बात मा नोखिया
का बताववँ गड़ी वो हा झन्नात हे
वोट ला पा जथे फाँस के गोठ मा
बइठे कुर्सी हमीं ला वो लतियात हे
खाय मा फायदा हे करेला करू
मीठ पेड़ा बिमारी ला बढ़हात हे
दुरपती हे अभो अउ दुशासन घलो
देख 'बादल' बता कोन घिल्लात हे
गजलकार--चोवा राम 'बादल"
हथबन्द, छत्तीसगढ़
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