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Thursday, 6 August 2020

गज़ल - अजय अमृतांशु

 गज़ल - अजय अमृतांशु


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

212   212   212   212


काम सिरतो भलाई के करना हवय,

बैठ के गद्दी मा देश चरना हवय।


चुन के भेजे हवय वोला जनता सबो,

अब बछर पाँच जनता के मरना हवय।


खाली अपने अपन माल झड़कय जबर,

दुःखी जनता मरय जेब भरना हवय।


कोनो रद्दा बतावय बिपत मा नहीं, 

दीया अँधियार मा बनके बरना हवय।


प्यासे हे कतका बेरा ले देखव सबो,

मीठ पानी सही तोला झरना हवय।


बिरथा जिनगी हवय साधु संगत बिना,

संत बानी बचन सब ला धरना हवय।


मौत आथे सबों के सुनौ एक दिन,

फालतू के "अजय" फेर डरना हवय।


अजय अमृतांशु

भाटापारा

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