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Monday, 17 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212

का बताँव मोर का हाल हे, बिना जर के जइसे रे डाल हे।
का भरोसा आन के मैं करँव, इहाँ छइहाँ घलो काल हे।1

उहू आँख मूंद के बइठे हे, तहूँ सिर झुकाय लुकात हस।
उठे हाथ नइ घलो देश बर, का लहू मा तोर उबाल हे।2

मया मीत माँगे मिले नही, कभू भाग मोर खिले नही।
कुँवा बावली हा कहाँ ले भरे, इहाँ तो पियासे पताल हे।3

कहाँ सत डहर उहाँ सुख लहर, बने मन सदा सहे दुख दगा।
बिना सत घलो खुले भाग, झूठ बजार मा तो उछाल हे।4

कहाँ जिंदगी हे कहाँ मौत हे, सबे तीर मनखे मनके खौफ हे।
डरे मनखे मन लड़े मनखे मन, कहाँ सुलझे कोनो सवाल हे।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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