ग़ज़ल-ज्ञानु
बहरे रजज मखबून मरफ़ू मुखल्ला
मुफाइलुन फाइलुन फ़उलुन मुफाइलुन फाइलुन फ़उलुन
1212 212 122 1212 212 122
बने नजर ला जमाय रखबे बिछे हे काँटा कदम कदम मा
सम्हल के चलबे बने रे भाई खनाय गढ्ढा कदम कदम मा
खड़े इहाँ घेर देख रसता अपन लगे नइ बिरान भाई
हवय अबड़ आज चलना मुश्किल मिले हे बाधा कदम कदम मा
का गोठियावँव का दुख बतावँव नता इहाँ छिन मा टूट जाथे
बने समझबूझ जोर रिश्ता टुटय भरोसा कदम कदम मा
अलग अलग रूप धर के बइठे ठगत हवय रोज रोज माया
पता नही कोन रूप मा मिल जही ये ठगिया कदम कदम मा
बढ़त दिनोंदिन नशा सुवारथ फँसत हे नादान बनके मनखे
भटक जबे झन रे 'ज्ञानु' मिलही कहूँ ये तोला कदम कदम मा
ज्ञानुदास मानिकपुरी
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