ग़ज़ल ---आशा देशमुख
*बहरे रजज मखबून मरफू मुखल्ला*
मुफाइलुन फाइलुन फ़उलुन मुफाइलुन फ़ाइलुन फ़उलुन
1212 212 122 1212 212 122
लगत हवय बड़ जी असकटासी,समय घलो हा पहाड़ लागे।
गली डहर हा दिखत हे सुन्ना,सबो डहर अब उजाड़ लागे।
धरे हे डिग्री पढ़े हे कॉलेज, भरत हवय रोज रोज फारम
पता नही का तोला रे बइहा,ये नौकरी बर जुगाड़ लागे।
नदी समुंदर बदे मितानी,का झोपड़ा का महल बसेरा
कहाँ मढ़ावँव में पाँव संगी,तुँहर तो खिड़की किवाड़ लागे।
बने हे दूल्हा परी बिहाये,उठात हावय वो नाज नखरा
सियान मन के रखे जिनिस हा, ये सुंदरी ला कबाड़ लागे।
मया के फांदा लरी जरी हे, कहूँ ला फांसे कहूँ उबारे
भगत रतन ये बने जगत मा,अबड़ बड़े सुख लताड़ लागे।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
जबरदस्त रचना
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