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Wednesday 12 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल- मनीराम साहू‌ 'मितान'

 छत्तीसगढ़ी गजल- मनीराम साहू‌ 'मितान'

बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला

मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन

1212 212 122 1212 212 122

धरम करम ला हवयॅ भुलाये, कुछू ला कोनो डरयॅ नही जी।
कथें हवय ये नवा जमाना, बड़े घलो ला बरयॅ नही जी।

गुनय नही जी अपन ददा ला, अबड़ सताथे अपन के दाई,
हवय भले वो सॅचार लइका, बुता तियारे करय नही जी।

तरी तरी अउ पिका जमत हे, दुबी बढ़त हे दुराचरन के,
प्रयास कतको भले करव तुम, बिना खने जर मरय नही जी।

गॅवाय बर कुछ अपन ला परही, हवय कहूॅ कुछ जिनिस ला पाना।
भले रहय ऊॅच झाड़ केरा, बिना कटे अउ फरय नही जी।

पढ़े भले नइ हवय बबा हा, कढ़े हवय बड़ हवय मयारू,
कहय सबो के बनात बनकत, तभो ले कोनो धरय नही जी।

कतिक लुकाबे बुड़ो के पानी, उफल जही सच के छोट कठवा,
सुताय रख ले दबाय लद्दी, कभू सरोये सरय नही जी।

रखय गुमानी भले बड़े हे, छिमा बिना जी हृदय हे खॅइता,
कहय मनी हरि भजन‌ करे बिन, कभू ये चोला तरय नही जी।

मनीराम साहू 'मितान'

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