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Friday 28 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212

मिले हाँ मा हाँ बने काम बर, कभू मोर मुख नही बोले झन।
झरे मंदरस के असन बचन हा, जहर भुला घलो घोले झन।

रमे काम मा सदा मन रहे, बिना काम के मिले मान ना।
रहे मोर नित बने लत नियत,जिया लोभ मा कभू डोले झन।

सदा राख भाई ल भाई कस, दिखा आँख ल दाँत झन कटर।
बने वो भरत बने वो लखन, ढहा लंका भेद ल खोले झन।

धरे हौं विपत धरे हौं दरद, तभो ले सड़क ठिहा घर गढ़ौ।
महूँ आँव मनखे के रूप काठ, समझ कोई छोले झन।

दिये हे जनम खपा तन बदन, सदा रात दिन करे हे जतन।
मया हे कतिक ददा दाई के, उठा ऊँगली कोई तोले झन।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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