छत्तीसगढ़ी गज़ल- मोहन वर्मा
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
मीठ बोली घलो अब सुहावय नहीं ।
जागथँव रात भर नींद आवय नहीं।
घाम- जाड़ा बरोबर हवे मोर बर,
तोर सुध मा रे संगी जनावय नहीं ।
ये जमाना बने मोर बइरी हवे,
कर बहाना कभू मन रिझावय नहीं ।
झन परोसी मरय गा कभू भूख मा,
सोच के पोठ कौंरा खवावय नहीं ।
बात सिरतोन हावय सगा मान ले,
जाँच ले हाथ छइँहा धरावय नहीं ।
मोठ हे तोर खीसा ह काबर बता,
पाप के धन लुकाये लुकावय नहीं ।
भेंट होही कभू जब डहर- बाट मा,
राज के बात "मोहन" बतावय नहीं ।
--- मोहन लाल वर्मा
ग्राम अल्दा, तिल्दा, रायपुर (छत्तीसगढ़)
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