मुकम्ल गजल -मनीराम साहू मितान
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
रूप कइसन अपन वो बनाये हवय।
मूड़ आधा के चूॕदी चनाये हवय।
हे झुलत कान लुरकी उहू एक मा,
घेंच माला घलो ओरमाये हवय।
लाम दाढ़ी रखे संत ज्ञानी असन,
मेंहदी ला उहू मा रचाये हवय।
जींस पहिरे हवय जी कपाये असन,
देख पाछू कुती बोचकाये हवय।
हाथ हाबय मुबाइल अबड़ दाम के,
कान फुंदरा असन कुछ लगाये हवय।
चेत पुस्तक पढ़े मा रथे जी कहाॅ,
ज्ञान फिल्मी मगज मा समाये हवय।
लेत रइथे सदा फटफटी के मजा,
अंक गाड़ी जघा लव लिखाये हवय।
थोरको कुछ कहय जी मनी हर कहूॅ,
बिख उछरथे मुॅहू जे भराये हवय।
मनीराम साहू मितान
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