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Saturday 8 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल- मनीराम साहू‌ 'मितान'

 छत्तीसगढ़ी गजल- मनीराम साहू‌ 'मितान'


बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


दिखा के टूॅहू हरयॅ ठगइया, गली गली मा घुमत हवयॅ गा।

गरीब मन के हरयॅ लुटइया, गली गली मा घुमत हवयॅ गा।


कहॉ ठिकाना हवय बुता के, टकर परे हे नशा‌ करे के,

मॅगाय दारू अबड़ पियइया, गली गली मा घुमत हवयॅ गा।


भले कहत हें नफा अपन‌ बर,लहू सबन के हवय जी लाली।

मड़ाय ठेनी मनुज लड़इया, गली गली मा घुमत हवयॅ गा।


चलत हवय योजना ह कागज, भले मचे हे बजार हल्ला,

बिना‌ कदर के हवयॅ जी गइया, गली गली मा घुमत हवयॅ गा।


कहाॅ ठिकाना हवय पढ़े के, कथे पढ़ावव लगाव पोंगा,

ढिलाय छेल्ला सबो पढ़इया, गली गली मा घुमत हवयॅ गा।


बढ़े हवय जी नॅगत करोना, छिनाय हाबय गा काम धंधा,

मरत भुखन हें बुता करइया, गली गली मा घुमत हवयॅ गा।


भुले हवय सब अपन अपन‌ मा, कहाॅ रथे जी फिकर दुसर के,

मनी हृदय के दरद बढ़इया, गली गली मा घुमत हवयॅ गा।


मनीराम साहू 'मितान'

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