गजल -दिलीप वर्मा
बहरे रजज़ मख़बून मरफू मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122
सम्हल सम्हल के कदम बढावव बिछाय काँटा हवय डगर मा।
जगा जगा मा मिले मुसीबत बहुत समस्या हवय सफर मा।
बढ़े जे आगू त साँप हावय हटे जे पाछू कुँआ खनाये।
करम के रस्सी तको ह टूटे लटक गये हन इहाँ अधर मा।
बहुत मिलावट हे आजकल तो सबो खजानी जहर भराये
मगर जहर मा तको मिलावट कहाँ मरे आजकल जहर मा
हवा तको मा जहर घुले हे बिना लगाए न मास्क निकलव।
उही बचे हे इहाँ सुरक्षित रहे खुसर के सदा जे घर मा।
बिना बिचारे जे काम करथे समे परे ले अरझ जथे जी।
विचार मंथन सदा उचित हे मिले सफलता सबो डहर मा।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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