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Monday, 3 August 2020

गज़ल - अजय अमृतांशु

गज़ल - अजय अमृतांशु

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212   212   212   212

सच के महिमा घटाये ले घटही कहाँ।
झूठ पाटे ले मनखे के पटही कहाँ। 

दूध चलनी म दूहय करम दोष दै।
बिन मिटाये अँधेरा ह मिटही कहाँ।

नाम सिरतो कमाये बने तै बड़े।
हे लबारी के चद्दर त खँटही कहाँ।

दुनिया भर मा हवै पापी छलिया अबड़।
आही जमराज ता फेर नटही कहाँ।


जे कमाये हवै बाप माँ के मया। 
ये बँटाये ले सिरतो म बँटही कहाँ।


रक्षा खातिर खड़े देश के सेना हा।
जान जाही भले फेर हटही कहाँ।


काम धंधा करय ना घुमय रात दिन।
तब गरीबी के बादर ह छँटही कहाँ।

अजय अमृतांशु
भाटापारा

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