छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122
नयन मुँदे हस गरब वसन मा, डहर मा सत के झपात हस रे।
उगे कहाँ हे अभी पाँख हा, अगास उड़े बर नपात हस रे।।1
ठिहा ठिकाना बने बनाना, मया दया धर उमर पहाना।
कभू इती जा कभू उती जा, घिलर घिलर तन खपात हस रे।
करम रही ना धरम रही ना, उहाँ सही मा शरम रही ना।
टिना हरस अउ कनक हरौं कहि, अपन बदन तैं तपात हस रे।3
मनुष जनम धर मरत हरत हस, दिखत कहाँ हस बने तने तैं।
लगत हवस जस कँदाय कपड़ा, जघा जघा ले कपात हस रे।4
हरौं कथस तैं गुनी गियानी, तभो रहय नइ बने सियानी।
खुदे पहाड़ा गलत पढ़त हस, दुसर घलो ला जपात हस रे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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Saturday 8 August 2020
छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
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गजल
गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...
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सुग्घर रचना बधाई
ReplyDeleteबढिया रचना
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