छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122
बने बतैया मिले घलो नइ, गलत बतैया भरे पड़े हे।
दुसर के करनी ला कोन भाथे,अपन जतैया भरे पड़े हे।
कहाँ गिरे ला बचाय खातिर,करे उदिम कौने गा मुसाफिर।
जतन करैया कहाँ हे कोनो, सतत सतैया भरे पड़े हे।।
गधा पहिर चलथे शेर खँड़ड़ी, दिखय घलो कौवा आज पढ़ड़ी।
कते बनैया हे मंदरस के, इहाँ दतैया भरे पड़े हे।
फिकर प्रकृति के करे ना मनखे, करत हवै सब उजाड़ मनके।
भले हरे जिंदगी पवन जल, तभो मतैया भरे पड़े हे।।
रटत हे नेता कि दुख भगाही, अबक तबक बस बिहान आही।
विपत हरैया कहाँ हे कोई, दरद दतैया भरे पड़े हे।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
- बाल्को, कोरबा(छग)
वाह वाह
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