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Saturday 8 August 2020

गजल-दिलीप वर्मा

 गजल-दिलीप वर्मा

बहरे रज़ज मख़बून मरफू मुखल्ला 

मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन

1212 212 122 1212 212 122  


उहाँ अमीरी न हे गरीबी जिहाँ मया के बजार भाई। 

सजे सजाये सबो मिलत हे जिहाँ चले नइ उधार भाई।  


बिना लड़े जीत कइसे होही समर म आके अभी दिखावव। 

उही मजा ला चखे हमेसा भले मरे जीत हार भाई।


बड़ा बड़ौना बताये सब ला बड़ा मजा ले पनीर खाये। 

कहाँ दबाये ले ओ दबत हे सबो बतावय डकार भाई।


बड़ा अमीरी के रौब झाड़े खवाय तँय सब ला लेग होटल।

उधार बाँकी अभी तलक हे करे न वापस हमार भाई।


सबो सवाँगा भले करे तँय दिलीप बिंदी बिना अधूरा

कहाँ सुहाथे कढ़ी तको हर बता डले बिन लगार भाई 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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