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Friday, 28 August 2020

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 **ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे कामिल मुसम्मन सालिम*

*मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन* *मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन*

*11212 11212 11212 11212*


सुनो जिंदगी के ये खेल मा, कभू हार हे कभू जीत हे।

कभू सुख बसे हे घाम मा, कभू तो लुभाय ये शीत हे।


का लिखाय हे यहू जान ले ,तहीं पढ़ अपन खुदे हाथ ला,

जेन पढ़ सके तोर आँख ला, उही ला समझ सही मीत हे।


इहाँ रोज रोज कमात हस,कहाँ ले जबे तेँ सकेल के

कभू भीतरी ल भी देख ले,ये भराय मन मया प्रीत हे।


ये बजात हे कोई रोज धुन,सुनो टेर देके जी कान ला

ये हवा नहर के हिलोर मा,सबो जग जहाँन म गीत हे।


नही आय काम जी छल गरब,कभू सोच झन तेँ जुगाड़ बर

इहीं हे जनम इहीं हे मरण,इही तो जगत के जी रीत हे।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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