Total Pageviews

Saturday, 23 January 2021

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


ऊपर चढ़े मनखे बड़े नइ आय समझ मा।

रइथें सदा दिल के सड़े नइ आय समझ मा।


परिवार भुला के रथें गा जेन मगन बड़,

मनखे पिये उन्डे पड़े नइ आय समझ मा।


रहिथे सदा रिश्ता बना इंसान सँगे मा,

आने हरे कहिके खँड़े नइ आय समझ मा।


वो मीठ करे गोठ सदा पोठ धँवा के,

तिल ताड़ बना के लड़े नइ आय समझ मा।


बाँटय दिखा कमती रहे पर जादा बतावय,

कतको खुदे हाबय झड़े नइ आय समझ मा।


रहि साथ गरीबी के सदा खेत कमाथे,

दिन रात वो माटी गड़े नइ आय समझ मा।


कइथे मनी मैं तो सदा ले लँगटा हवँव‌ गा,

हे सोन जी कुरता जड़े नइ आय समझ मा।


- मनीराम साहू 'मितान'

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...