गजल-चोवा राम 'बादल'
*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*
*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*
*212 1212 1212 1212*
दोष खुद के नइ दिखै मुँदाय जब नजर रथे
खोंट खोज आन के गिनात का कसर रथे
कुछ कहे करे मा कुछ भरोसा हा टिकै नहीं
एक हे जुबान हा तभे बने कदर रथे
घाव मिट जथे लगे कटार के करे दवा
चोट फेर बात के हरा सरी उमर रथे
रूप रंग दगदगात चाल ढाल खीक कस
सोन के कलश समझ भरे कभू जहर रथे
हाथ पाँव जोर मत सजोर बन नँगा ले हक
चूहथे पसीना तोर माथ तरबतर रथे
प्यार मा पिघल जथे पहाड़ दिल कठोर हा
प्यार सच्चा नइ मरै सदा अमर अजर रथे
साध ले निशाना चेत भटका मत कहूँ
अनमना मा काम धाम हा शटर पटर रथे
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment