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Friday, 15 January 2021

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन मक्बूज

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन 

1212 1212 1212 1212


कभू बने बनाय काम झन बिगाड़ संगी रे 

सुघर दिखत बगीचा बाग झन उजाड़ संगी रे 


मया के बोल बोल फेर झन बनय कभू इहाँ 

धियान रख सदा तहूँ ये तिल के ताड़ संगी रे 


पता चलय नही करे बिना बड़े या छोट काज हे

जथे भरम हा टूट ऊँट जब चढ़े पहाड़ संगी रे 


सुघर मिले हवय मनुज के देह बन मनुज रहा

नशा मा फँस के एला झन बना कबाड़ संगी रे 


कदम कदम मा 'ज्ञानु' तोला हे गिराय बर खड़े 

हवय बचाना शाख शेर बन दहाड़ संगी रे 


ज्ञानु

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