गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे हजज़ मुसम्मन मक्बूज
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212
कभू बने बनाय काम झन बिगाड़ संगी रे
सुघर दिखत बगीचा बाग झन उजाड़ संगी रे
मया के बोल बोल फेर झन बनय कभू इहाँ
धियान रख सदा तहूँ ये तिल के ताड़ संगी रे
पता चलय नही करे बिना बड़े या छोट काज हे
जथे भरम हा टूट ऊँट जब चढ़े पहाड़ संगी रे
सुघर मिले हवय मनुज के देह बन मनुज रहा
नशा मा फँस के एला झन बना कबाड़ संगी रे
कदम कदम मा 'ज्ञानु' तोला हे गिराय बर खड़े
हवय बचाना शाख शेर बन दहाड़ संगी रे
ज्ञानु
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