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Saturday, 30 January 2021

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


भाव के उफान मा ये डायरी भरत हवे।

दुख दरद हँसी खुशी हृदय तरी झरत हवे।


जेन काठ भीतरी हमाय हे घुना करत।

चूल के धधक धधक ये आग मा जरत हवे।


गाय भैंस नइ रखे नंदात जाय कोटना

गाँव के सुमत मया ल कोन हा चरत हवे।


लोभ मोह बाढ़गे जमाय पाँव रोग हा

दूर होत हे नता  सगा पना ढरत हवे।


खेत खार हे अबड़ तभो जिये गरीब कस

लोभ कोचिया अपन ही जेब ला भरत हवे।



आशा देशमुख

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