गजल- अजय अमृतांशु
*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*
*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*
*221 1221 1221 122*
बैरी हवे सब दिन के तभो हितवा बनत हे।
आँखी मा हवय आँसू गटर पाछू खनत हे।
औकात हवे मनखे के दू आना के भाई।
का कहिबे तभो छाती बड़े भारी तनत हे ।
वर्दी के हवय भारी बड़े रौब बतावँव।
दोषी हवे छूटे तभे सिधवा ला हनत हे।
का कहिबे हकीकत इही हे देश मा भाई।
अब गोडसे के बर्थ डे पार्टी हा मनत हे।
जानत हे लबारी हे महापाप कहे सब।
ये लद्दी मा काबर तभो मनखे हा सनत हे।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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