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Friday, 15 January 2021

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*



राम नाम के चढथे नाव पार हो जाथे।

 शब्द भीतरी जाये तब ओंकार हो जाथे।


झन समझ कहूँ ला नानुक धरे रथे गुण ला

रस गुदा सूखे तुमड़ी तक सितार बन जाथे।


देख टेड़गा लकड़ी ला जलाय चूल्हा मा

सोझ जाय खाँधा रुख के मिंयार बन जाथे।


झार ला धरे बइठे कोन खाय  मिरचा ला

तेल आँच में कड़के तब बघार बन जाथे।


बैठका करे आखर मन सही गलत का हे

शुद्ध भाव निखरे तप के विचार बन जाथे।


बैर मीत दूनो हा मुँह तरी करे बासा

बात घाव ला भरथे या कटार बन जाथे।


सान सान के माटी चाक मा घुमाए हे

गुरु घलो इहाँ विधना कस कुम्हार बन जाथे।



आशा देशमुख

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