गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महजूफ़
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
221 1221 1221 122
हे कोन पुछैया ग इहाँ दीन दुखी के
धर हाथ चलैया ग इहाँ दीन दुखी के
मिल जाथे अबड़ हाँसी गरीबी के उड़ैया
हे कोन चिन्हैया ग इहाँ दीन दुखी के
बस मुँह ले जताथे मया सब घाव म मरहम
हे कोन लगैया ग इहाँ दीन दुखी के
मिल कोनो जतिस स्वार्थ अपन छोड़ के अब
दुख पीरा हरैया ग इहाँ दिन दुखी के
सब काम बनत ' ज्ञानु' मितानी ल निभाथे
नइ साथ निभैया ग इहाँ दीन दुखी के
ज्ञानु
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