*ग़ज़ल -आशा देशमुख*
*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*
*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*
*212 1222 212 1222*
धान अन्न बेचे बर जाये भाव तो नइहे।
माँग कोन कइसे सुनही चुनाव तो नइहे।
हाथ पाँव थक जाथे रात दिन हवे चलना
घाम शीत बरखा चलथे पड़ाव तो नइहे।
कोन बंद करही दानव दहेज के मुँह ला
नेवता शहर भर भेजे हियाव तो नइहे।
लाभ बस अपन देखें साथ नइ निभाये हे
प्रश्न के लगे लाइन हे सुझाव तो नइहे।
खेत में फसल ला अब तो खड़े खड़े बेचें
फ्लेट के जमाना आये पटाव तो नइहे।
लूट लूट के मेवा खाये भरे तिजोरी ला
लेवना सही बोली पर लगाव तो नइहे।
ये सफर हवे जिनगी के चलो चलो आशा
हाँफगे चले हस थोकिन चढ़ाव तो नइहे।
आशा देशमुख
No comments:
Post a Comment