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Saturday 23 January 2021

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

काल-काल जे करे समे सदा वो खोय हे। 

काल आय ना कभू जे काल आय रोय हे।


आज के समे गवाँ जे काल मा टिके रहे।

जान लव वो जान के समे ले हाथ धोय हे।


नाम तँय कमाय बर नवा-नवा उदिम करे। 

काम एक जे करे उही के नाम होय हे। 


घण्टी ला बजा-बजा जगात हे कभू-कभू। 

भाग के उठाय ले उठे कहाँ वो सोय हे। 


तोर कान ला पकड़ समे परे म लेगही।

बात वो सुने नही जे देंवता पठोय हे। 


तोर काम देख-देख दाई अउ ददा दुखी।

काम कुछ तो कर बने जे तोर ले सँजोय हे। 


आखरी समे रहे सबो भगाय जाय जी। 

कोन पाय कोन खाय कोन हा पचोय हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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