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Friday 29 January 2021

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


गे समे फिरय नहीं चिभिक लगाय काम कर।

कर सकत हवस तहीं चिभिक लगाय काम कर।


काम जे धरे हवस बिगड़ जही का सोच झन,

हे सबो सही सही चिभिय लगाय काम कर।


पड़ अपन बिरान मा पिछड़ जबे गा जान ले,

झन जमा कपट दही चिभिय लगाय काम कर।


पाँच तत्व‌ के बने निसार हे गा देह हा,

नाँव‌ बस‌ जगत रही चिभिय लगाय काम कर।


सब मजा करत हवँय ना‌ सोचबे ये बात गा,

सोच योग्य हँव मही चिभिय लगाय काम कर।


ज्ञान अइसे चीज हे जतिक बँटय बढ़य नँगत,

बाढ़ ये बनय पही चिभिय लगाय काम कर।


करनी हा लिखात हे मितान सुन सबो उँहा,

सब हिसाब हे बही चिभिय लगाय काम कर।  


- मनीराम साहू 'मितान'

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