*ग़ज़ल -आशा देशमुख*
*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*
*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*
*212 1222 212 1222*
पाय हे बहुरिया बड़ नेंग मुँह दिखौनी के।
सास के अभी तक झुमका हवय पठौनी के।
साग भात रांधव खावव मिले कहाँ रोटी
भाव बाढ़गे अब चाँउर गहूँ पिसौनी के।
हे कभू कभू धरमी कराय तीरथ ला
दान धन धरमशाला में करव रुकौनी के।
अब किसान मन गरमी मा डबल फसल बोयें
लागथे अबड़ बिजली बोर नल पलौनी के।
साग पान लागे सुघ्घर मढ़ाय पसरा मा
ले भले किलो भर लालच रहे पुरौनी के।
आशा देशमुख
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