ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'
बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
जीव हा जरत रइथे कोन ला बतावँव मैं।
आगी कस बरत रइथे कोन ला बतावँव मैं।
मार के बड़े मन हा रोज के लबारी ला,
जेब ला भरत रइथे कोन ला बतावँव मैं।
देख के गरीबी ला मन कचोट जाथे गा,
आँसू हा ढरत रइथे कोन ला बतावँव मैं।
बोल हा हवय चोक्खी छेदथे गा छाती ला,
खीला अस थरत रइथे कोन ला बतावँव मैं।
काँही के फिकर नइहे बाट फेंकथे कचरा,
घुर असन सरत रइथे कोन ला बतावँव मैं।
मन हवय गा बइहा कस सोन नइ चिन्हय ये हा,
राख बर मरत रइथे कोन ला बतावँव मैं।
मोर पीरा नइ जानय हे मितान साथे मा,
घाव खोधरत रइथे कोन ला बतावँव मैं।
ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'
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