ग़ज़ल -आशा देशमुख
*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*
*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*
*221 1221 1221 122*
आये रहे व्यापार के शुरुआत करे बर।
मजबूर हवे देश हा आयात करे बर।
ये देश हमर खेत हमर चीज हमर हे
दूसर करा फोकट डरौ झन बात करे बर।
विश्वास करत आत हवन पोसवा मन के
मौका मिले चूके नही हे घात करे बर।
बिन नेवता हितकारी नता लाग जुड़ाथे
सुख दुख मा सकेलव मया ला तात करे बर।
घर द्वार शहर गाँव नगर देश बंटागे
अब कोन अही एक धरम जात करे बर।
आशा देशमुख
No comments:
Post a Comment