ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'
बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
हे परे भुयाँ कोनो बात के फिकर नइये।
मंद हे जहर महुरा घात के फिकर नइये।
जाड़ हे जनावत बड़ लागथे अकड़ जाही,
पूस के दरद दायी रात के फिकर नइये।
खाय बर मरत हे वो अधचुरा हवय जेवन,
जर जवय भले मुँह हा तात के फिकर नइये
बोज मुँह मा गुटका ला वो थुकय अबड़ के जी,
सर जही गा कचरा कस दाँत के फिकर नइये।
तास मा रमे हे वो कर्ज मा लदाये हे,
काय खाहीं लइका मन भात के फिकर नइये।
देख तो वो टूरा हा होले कस पढ़त हाबय,
पर जही तमाचा हा लात के फिकर नइये।
हे मितान झगराहा बाप ला लड़त रइथे,
देये हे जनम वोला मात के फिकर नइये।
ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'
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