गजल-दिलीप कुमार वर्मा
बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212
बहुत खराब हे डगर ये जिंदगी के जान जी।
सम्हल-सम्हल के चल नही ते गिर जबे उतान जी।
लिखे हवस जे नाम ला ते रेत मा उकेर के।
लहर बहाय लेगही रहे नही निशान जी।
अकाश मा सुरुज हवे जे रासता दिखात हे।
तभो हवय बहुत इहाँ हपट मरे बिहान जी।
गियास ला अँजोर मा जलाय ले भला कहाँ।
दिया जलाय रात जेन पुण्य के समान जी।
बहुत बढ़त हवय इहाँ गली सड़क म भीड़ हर।
चलाव कार गाड़ी ता रखे करव धियान जी।
गरीब जान के बहुत सतात हे ये जिंदगी।
कहाँ पता ये जिंदगी ल मोर खान दान जी।
'दिलीप' देख ले शहर जलत हवय उदास हे।
उदिम कछू करव नही ते नइ बचे परान जी।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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