गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे हजज़ मुसम्मन अशतर मक्बूज मक्बूज मक्बूज
फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
212 1212 1212 1212
काम हा बनाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ
चिखला मा सनाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ
छाँव कब तलक ले मिलही रोज के कटात हे
पेड़ ला लगाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ
आज लइका मन हमर गलत भटक गे रसता हे
राह सत धराय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ
झूठ फइले इस कदर भरम मा परगे मनखे मन
का सही बताय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ
जेन सोय सोच करना का हे कुंभकर्ण बन
चेचका उठाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ
नइ सुनय न समझे गुहार मुखिया जब हमर
ओला बस हटाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ
ऊँगली बिकट उठाथे 'ज्ञानु' बात बात मा
आइना दिखाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ
ज्ञानु
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