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Saturday, 23 January 2021

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


पेड़ खूब हे कटत गा कोन‌ दय जवाब ला।

रोज रोज हे घटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


कर डरिन बिगाड़ डार कचरा सब सकेल‌ के,

ताल कूप हें पटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


जल नँगत चुहक डरिन जी छेद कर जघा जघा,

धरती ठाड़ हे फटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


जेन हा करय सुरक्षा घाम तेज ताव ले,

रहि अगास नइ खँटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


चेत हे कहाँ चिटिक फसल‌ जहर डरात हे,

घुरवा खाद हे छँटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


टोर फोर कर डरिन सबो नदी पहाड़ बन,

अब समुद्र हे डँटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


खाय वो कसम रहिस गा लाहूँ मैं सुधार सब

अब मितान हे नटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


- मनीराम साहू 'मितान'

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