Total Pageviews

Saturday 23 January 2021

ग़ज़ल -आशा देशमुख

 ग़ज़ल -आशा देशमुख


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


सब जानथे संसार मा ईमान बड़े हे

व्यपार करे बर इहाँ तो झूठ खड़े हे।


हे एक डहर मान मया एक डहर छल

कइसे घुसे सुमता उहाँ तो लोभ अड़े हे।


दिन रात चले तोर सँगे संग गरीबी

जा देख अपन खेत खजाना हा गड़े हे।


पानी नही आँखी तरी बंजर हवे जिनगी

अब कोढ़िया के हाथ मा मिहनत ह सड़े हे।


अँधियार में झन खोज पहावत हवे रतिया

आ देख सुरुज माथ रतन सोन जड़े हे।


आशा देशमुख

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...