ग़ज़ल -आशा देशमुख
*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*
*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*
*221 1221 1221 122*
सब जानथे संसार मा ईमान बड़े हे
व्यपार करे बर इहाँ तो झूठ खड़े हे।
हे एक डहर मान मया एक डहर छल
कइसे घुसे सुमता उहाँ तो लोभ अड़े हे।
दिन रात चले तोर सँगे संग गरीबी
जा देख अपन खेत खजाना हा गड़े हे।
पानी नही आँखी तरी बंजर हवे जिनगी
अब कोढ़िया के हाथ मा मिहनत ह सड़े हे।
अँधियार में झन खोज पहावत हवे रतिया
आ देख सुरुज माथ रतन सोन जड़े हे।
आशा देशमुख
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