ग़जल- अजय अमृतांशु
बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
होही माटी सब कुछ काबर बता धरत हावस।
पाई पाई जोड़े काबर बता मरत हावस।
भोगना हवय सब ला कर्मदंड जे हावय।
फेर काम गंदा काबर बता करत हावस।
योजना बनत हे अब स्वार्थ सिद्धि के खातिर।
देश नोहे चारा काबर बता चरत हावस।
हे हिसाब सबके भगवान के रजिस्टर मा।
पाप के घड़ा ला काबर बता भरत हावस।
काम कर हमेंशा सच्चाई के डगर चल के।
जब डगर हे सच के काबर बता डरत हावस।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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