छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव
बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़
मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन
221 1221 1221 122
पापी के बढ़त जात हे संख्या ह दिनों-दिन
ये बात ल अलखात हे गंगा ह दिनों-दिन
अन्याय निहारय खुदे के घर म नियकहा
होवत हे शरमसार व्यवस्था ह दिनों-दिन
अश्लील दुअरथी सबे गाना हे सुपरहिट
ये जान के पछतात हे भाखा ह दिनों-दिन
गुस्सैल घमंडी हठी मुड़पेल निरंकुश
होवत हे सबे देश के सत्ता ह दिनों-दिन
रिस्ता नता के बीच म बिस्वास मया के
कमजोर परत जात हे धागा ह दिनों-दिन
जननी के अनादर समे दिन-रात करत हे
बाढ़त हे अनाचार के घटना ह दिनों-दिन
बयपार नशा के बढ़े जस नार लमेरा
पहिदन लगे घर-घर जुआ सट्टा ह दिनों-दिन
होवत हे धरम-जाति के नित गोठ उखेनी
समता के मरत जात हे आशा ह दिनों-दिन
सुखदेव गरीब आदमी के पेट उना हे
बड़हर के भरत जात हे ढाबा ह दिनों-दिन
-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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