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Saturday 23 January 2021

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़

 मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन


221 1221 1221 122


पापी के बढ़त जात हे संख्या ह दिनों-दिन

ये बात ल अलखात हे गंगा ह दिनों-दिन


अन्याय निहारय खुदे के घर म नियकहा

होवत हे शरमसार व्यवस्था ह दिनों-दिन


अश्लील दुअरथी सबे गाना हे सुपरहिट 

ये जान के पछतात हे भाखा ह दिनों-दिन


गुस्सैल घमंडी हठी मुड़पेल निरंकुश

होवत हे सबे देश के सत्ता ह दिनों-दिन


रिस्ता नता के बीच म बिस्वास मया के

कमजोर परत जात हे धागा ह दिनों-दिन


जननी के अनादर समे दिन-रात करत हे

बाढ़त हे अनाचार के घटना ह दिनों-दिन


बयपार नशा के बढ़े जस नार लमेरा 

पहिदन लगे घर-घर जुआ सट्टा ह दिनों-दिन


होवत हे धरम-जाति के नित गोठ उखेनी

समता के मरत जात हे आशा ह दिनों-दिन


सुखदेव गरीब आदमी के पेट उना हे

बड़हर के भरत जात हे ढाबा ह दिनों-दिन


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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