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Friday, 29 January 2021

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


प्यार रंग मा सने फिरत हवस बही बने।

बाप माँ ला भूल गेस कोन ता कही बने।1


ध्यान ला जमा के रख गियान गुण कमा के रख।

लेवना तथे निकलथे दूध जब दही बने।2


मनखे मनके सोच ला समझ सके कहूँ नही।

सबके सब हवे गलत ता कोन हे सही बने।3


हंस के सुभाव देख हाँसथे सबे इहाँ।

कोकड़ा के भेष धर गरी सदा लही बने।4


हाँ नही कहत रहव ग देख ताक के समय।

हर जघा न हाँ बने न हर जघा नही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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