गजल-अरुण कुमार निगम
*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*
*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*
*221 1221 1221 122*
छानी ले मया बरसे वो घर-द्वार कहाँ गे
पहुना ल कहै देवता संस्कार कहाँ गे।
धरती मा सरग लाने के हुंकार भरइया
खुद ला कहे भगवान के अवतार कहाँ गे।
सब छोड़ के ये गाँव ला जावत हें शहर मा
रोके जो पलायन ला वो सरकार कहाँ गे।
सच लिखके हलाकान करै रार मचावै
अँगरा भरे आखर के वो अखबार कहाँ गे।
उद्योग ला उन हाट मा नीलाम करत हें
खोजत हे "अरुण" देश के रखवार कहाँ गे।
*अरुण कुमार निगम*
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