ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'
*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*
*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*
*221 1221 1221 122*
मिल साथ रहँय सब बड़े परिवार नँदागे।
रिश्ता नता के बीच रहय प्यार नँदागे।
लगगे बड़े चिमनी सबो गद खेत हमर मा,
धरसा सबो परिया लगे सब खार नँदागे।
बनगे बड़े बँगला बड़े बिल्डिंग सड़क अब,
सब बखरी बियारा सबे कोठार नँदागे।
बेकार घुमत हावे सबे मनखे अबड़ के,
युग आगे मशीनी जुना औजार नँदागे।
दिखथे कहाँ बर आम लगे अमली डहर मा,
बोहात नदी तरिया रहय टार नँदागे।
नँगतेच मिठावय चुरे हँड़िया मा फदक के,
वो कोदई के भात जिलो दार नँदागे।
दिखथे कहाँ अब बारू गजामूंग मितानी,
सीमेंट असन जमगे मया सार नँदागे।
- मनीराम साहू 'मितान'
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