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Friday, 29 January 2021

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

रात कारी ला भगाये जस सुरुज ह आय जी। 

मेहनत सुरुज असन ये जिंदगी के ताय जी। 


चाँद देख के चकोर सोंच मा परे हवय। 

कोन हर बनाये रूप मोर मन लुभाय जी।  


ईंट गारा ले बनाये हस बने भवन कका। 

घर तभे कहाय जब सबो म सुमता छाय जी। 


दीप ला जलाये ले अँधेरा दूर हो जथे।  

मन म जे अँधेरा तेन कइसे के भगाय जी।  


जब किसान छोड़ दय करे किसानी तब बता। 

कोन कारखाना तब ग रोटी ल बनाय जी।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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