गजल--चोवा राम 'बादल'
*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*
*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*
*221 1221 1221 122*
हे दाग लगे खादी चिराये दिखे हावय
छलिया हा कपट पासा ला जम के चले हावय
चुपचाप पितामह तो रहिस मूँड़ गड़ाये
अउ द्रोपदी रो रो के बँचावव कहे हावय
पहिचान के देखव तो मुखौटा हे लगाये
घुलमिल के हमर बीच मा बैरी बसे हावय
पक्का हे इरादा हा त मंजिल मा पहुँचबे
मकड़ी हा बुनत जाला का वो नइ गिरे हावय
मर खप वो भले जाही तभो दम लगा लड़ही
अन्यायी के आगू मा निहत्था भिंड़े हावय
हे चाह उहाँ राह ए सिरतोन मा होथे
विकलांग पहाड़ी के उपर मा चढ़े हावय
हे चाल चलन बिगड़े हवा काय तो लगगे
भाई के लहू धार मा भाई सने हावय
चोवा राम 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
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