गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़
फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
212 1212 1212 1212
रात ला बिताये बर तको ठिकाना नइ हवय।
राख घर म ले अपन वो अब जमाना नइ हवय।
कोन चोर बन जही त कोन मार भागही।
माथ मा कहाँ लिखाये हे फलाना नइ हवय।
दूर के ममा चले न दूर के बुआ चले।
साँच पूछबे त आज कल बहाना नइ हवय।
रोड मा तड़फ-तड़फ मरत हवय कतेक झन।
रेंगथें कतेक पर गिरे उठाना नइ हवय।
भूँख मा बिलख-बिलख गरीब रोत हे भले।
खात हे कुकुर ह आदमी के खाना नइ हवय।
जे मिले रखे चलव गलत सही न देखिहव।
होत हे गलत भले जी मुँह बजाना नइ हवय।
शेर राजा हे जिहाँ उहाँ कहे के काम का।
चीर फाड़ तक दिही जी आजमाना नइ हवय।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार
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