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Friday, 15 January 2021

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212 1222 212 1222


काम धाम करबे तब नाम तोर होही गा।

सत्य बाट चलबे तब जग मा शोर होही गा।


छोड़ दे नशा ला ये आय रोग-बीमारी,

चक्क साफ बढ़िया जिनगी के खोर होही गा।


देखबे जी पीरा के रात ये पहाही झट,

सुख सुरुज निकल आही लउहे भोर होही गा।


भाग के भरोसा मा काम हा बिगड़ जाथे,

गढ़ खुदे अपन किसमत तोरो जोर होही गा।


एक हो के रहिबो तब भाग जाही बइरी मन,

शांति अउ बिना भय के झार छोर होही गा।


बाँध ले मया मा तैं आव गा सबो झन‌ ला,

प्रेम ताग जुर जुर के पोठ डोर होही गा।


देख तो निचट खबड़ा अपखया मनी होगे,

कोनो जान पाइस नइ वो हा चोर होही गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

🙏🙏🙏

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