ग़जल- चोवा राम 'बादल'
*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
छूट जाही धन दौलत एक दिन तैं मर जाबे
कर कमाई पुन के संगी उही ला धर जाबे
मस्ती मा कबीरा गाले बने उलटबाँसी
बस जबे सबो के दिल तैं भले उजर जाबे
पक्का जान लेबे गा जिंदगी अउँट जाही
पानी कस कहूँ डबरा मा भरे ठहर जाबे
घेंच ला अँकड़ के चलबे डगर त का मिलही
फेंक दे अहम ला तब प्रेम बन बगर जाबे
धूल झन नजर ककरो झोंकबे कभू 'बादल'
सोच ले नजर ले सबके तुरत उतर जाबे
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment