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Friday 15 January 2021

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


हाल-चाल पूछत हस हाल के ठिकाना का

कोन जाने कब आही काल के ठिकाना का।


तोर देह माटी के झन अकड़ कभू संगी

टूट के बगर जाही ढाल के ठिकाना का।


चार दिन के जिनगानी खेल आय चौसर के

कान धर उठाही वो चाल के ठिकाना का।


मोर-मोर कहिके तँय झन सकेल धन-दौलत

हाथ ले बिछल जाही माल के ठिकाना का।


नाच-गा "अरुण" रुमझुम साँस-साँस जी ले रे

कब कहाँ भटक जाही ताल के ठिकाना का।


*अरुण कुमार निगम*

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